पुरोला (uttarkashi) सन् 1955 के तात्कालीन गढ़वाल– बिजनौर लोकसभा सीट से निर्दलीय सांसद उत्तराखंड के टिहरी राजपरिवार की राजमाता कमलेंदुमति शाह पहली निर्दलीय लोकसभा सदस्य थीं। उत्तराखण्ड से पद्मभूषण प्राप्त करने वाली वह पहली सख्सियत भी रही 13 मई 1955 को वो लोगों की जमीनी हकीकत, महीलाओं, बुजुर्गों की समस्या जानने के लिए सुदूरवर्ती जखोल गांव घोड़े में बैठकर पहुंची जहां तत्कालीन ग्राम प्रधान मुल्क दास के नेतृत्व में सैकड़ों लोगों ने उनका स्वागत धौंशा (स्थानीय ढोल), दमाव और रणसिंघा के साथ किया। रात्रि विश्राम उन्होंने वन विभाग के गेस्ट हाउस में किया जिसका उल्लेख गेस्ट हाउस के विजिटर बुक में उनके हस्त लिखित प्रमाण आज भी दर्ज़ है। इस गेस्ट हाउस की ऐतिहासिकता को बनाए रखने के लिए पार्क प्रशासन ने इसके जीर्णोद्धार के लिए शासन को प्रस्ताव भी भेजा है। 70वर्षीय भूमी देवी उस दिन को याद करते हुए बताती हैं कि जब राजमाता कमलेन्दुमती शाह जखोल गांव में लाल घोड़े में चढ़ कर पहुंची तो वे गांव की सीमा से बाहर ढाकुचा काली मंदिर के पास घोड़े से उतरकर पैदल गांव तक पहुंची उस समय यह परंपरा थी कि, कोई भी महिला घोड़े में सवार होकर गांव में नहीं आती थी। इसी परंपरा को कायम रखते हुए वे गांव से बहार घोड़े से उतर गई थी।वहीं 80 वर्षीय टीकाराम सिंह रावत और 85 वर्षीय अतर सिंह रावत उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि राजमाता की आंखों में अपनी प्रजा की गरीबी और उन दिनों की विकट परिस्थितियों के लिए बहुत दर्द छलक रहा था।
दरअसल, 1949 में टिहरी का भारतीय संघ मे विलय के बाद तत्कालीन राजा नरेंद्र शाह की मृत्यु हो गई। तब राजा के उत्तराधिकारी मानवेंद्र शाह को चुनाव लड़ने की सलाह दी गई पर उनका पर्चा खारिज हो गया। फिर रानी कमलेंदुमति निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उत्तरी। उन्होंने 1952 में गढ़वाल, बिजनौर लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ा और कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा सिंह को 13,982 मतों से हराकर जीत दर्ज कर दिल्ली लोकसभा में पहुंची। इसके बाद उन्होंने महिला एवं बाल संस्थाएं (लाइसेंसिंग) बिल -1954 पर लोकसभा में चर्चा करवाई थी यह उनका निजी विधेयक था। उन्होंने महिलाओं को बालिका सुधार, दिव्यांग और बुजुर्गों के लिए बहुत ऐतिहासिक कार्य किए।
कमलेंदुमति शाह का जीवन परिचय
कमलेंदुमति शाह का जन्म 20 मार्च 1903 में हिमाचल प्रदेश के क्योंथल राजघराने में जन्म हुआ। 13 साल की उम्र में ही उनका विवाह टिहरी के महाराजा श्री नरेंद्र शाह से हुआ। कमलेंदुमति को हिंदी, अंग्रेजी व फ्रेंच का अच्छा ज्ञान था, लेकिन वो गढ़वाली भाषा में ही लोगों से वार्तालाव करती थी। कोई गढ़वाली होते हुए भी हिंदी में बात करता तो वो उनसे नाराज हो जाती थी।
सांसद बनने के बाद कमलेंदुमति जी ने पहाड़ की महिलाओं, बुर्जुर्गों और शिक्षा के लिए कार्य करना शुरु किया, महाराजा नरेंद्रशाह ट्रस्ट की स्थापना की जिसमे उन्होंने राज्य के अनाथ, बेसहारा व विधवा महिलाओं के लिए स्कूल खोला। अन्धे और वृद्धों के लिए अंध और वृद्ध विद्यालय की स्थापना की। बालिकाओं के लिए माध्यमिक विद्यालय व महाविद्यालय खुलवाए। कमलेंदुमति को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए 1958 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इस तरह उत्तराखंड से पद्मभूषण प्राप्त करने वाली वह पहली सख्सियत बनी।
20 मार्च 1963 को उनके 60 वें जन्मदिन पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने टिहरी पहुंचकर बालिका कॉलेज का उद्धघाटन किया था। यह कॉलेज उन्हीं के नाम से जाना गया। शहर के जल समाधि लेने पर इस कालेज ने भी समाधि ले ली थीं। 15 जुलाई 1999 को मस्तिष्क कैंसर से उनका निधन हुआ, लेकिन भारत के इतिहास में पहली निर्दलीय सांसद और उत्तराखंड की पहली पद्मभूषण पाने वाली पहली महिला के रुप में उनका नाम हमेशा इतिहास के पन्नों में दर्ज रहेगा।
गेस्ट हाऊस की ऐतिहासिकता को देखते हुए इसके जीर्णोद्धार के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है जल्द ही इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोया जाएगा
–गौरव अग्रवाल रेंज अधिकारी, सुपिन रेंज