एक माह के फाउंडेशन कोर्स में लोकल भाषा से भी छात्रों को कराया जा रहा परचित
Shrinagar (पौड़ी)। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के दिशा-निर्देश पर अब एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं को लोकल भाषा का भी ज्ञान होना जरूरी बताया गया है। इससे छात्रों को चिकित्सा सेवा के दौरान लोकल भाषा में भी दक्ष बनने से जहां मरीजों की समस्या समझने में मदद मिलेगी ही साथ ही उनके इलाज करने में सहायता प्रदान होगी। इसी को देखते हुए प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत की पहल पर मेडिकल कॉलेज श्रीनगर में नये एमबीबीएस बेच के छात्र-छात्राओं को लोकल भाषा के ज्ञान से भी रूबरू कराया जा रहा है।
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सीएमएस रावत ने बताया कि श्रीनगर मेडिकल कॉलेज गढ़वाल क्षेत्र का चिकित्सा सेवा की लाइफ लाइन माना जाता है। यहां ग्रामीण अंचलों से मरीज इलाज कराने के लिए पहुंचते है। ऐसे में गढ़वाल के मरीजों द्वारा अपनी लोकल भाषा में ही अपना मर्ज डॉक्टरों के पास बताया जाता है। ऐसे में कतिपय बार डॉक्टरों को उनकी समस्या समझने में दिक्कत होती है। इसलिए एनएमसी के दिशा-निर्देशों पर अब लोकल भाषा के बारे में एमबीबीएस छात्रों को जानकारी दी जा रही है। अस्पताल में आने वाला मरीज गढ़वाली बोली में बीमारी, शरीर के अंगों का नाम सहित अन्य तमाम प्रकार की दिक्कतों को बताता है। इसलिए एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं को लोकल भाषा में जानकारी भी हो इसलिए फाउंडेशन कोर्स में गढ़वाली भाषा में भी सिखाया जा रहा है। बेस अस्पताल के आरकेएसके काउंसलर मनमोहन सिंह ने एमबीबीएस के छात्रों को अस्पताल में पहुंचने वाले ग्रामीणों क्षेत्र के महिलाओं एवं पुरुषों द्वारा गढ़वाली भाषा में बताये जाने वाले रोगों एवं शरीर के अंगों के बारे में जानकारी दी। साथ ही ऐसे मरीजों को समझने के लिए क्या क्या करना चाहिए इस बारे में जानकारी दी गई। एमबीबीएस के छात्रों ने भी गढ़वाली भाषा में मरीज द्वारा चिकित्सा सेवा लेते वक्त कही जाने वाली बातों को ध्यानपूर्वक सुना और उन्हें चिकित्सा सेवा के दौरान याद रखे जाने तथा मरीजों एवं स्वयं के लिए लाभाकारी बताया। इस मौके पर कम्युनिटी मेडिसन विभाग से डॉ. सुरेन्द्र सिंह, डॉ. संध्या, डॉ. अनिल शाह आदि मौजूद थे।