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जर्जर स्कूल में पढ़ने को मजबूर छात्र, कभी भी घट सकता है बड़ा हादसा, अधिकारी सो रहे निंद्रा में

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बीबीसी ख़बर, न्यूज नेटवर्क

Nougawon (30 october) नौगांव विकासखंड के सुदूरवर्ती थली गांव के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में अध्यनरत छात्र–छात्राएं भय और खौफ  में शिक्षा लेने को मजबूर हैं। विद्यालय भवन पुरी तरह जीर्ण शीर्ण अवस्था में है।जहां कभी भी कोई बड़ा हादसा घट सकता है। स्कूल प्रशासन ने कई बार अपने उच्च अधिकारीयों को इस बारे मे लिखित शिकायत दर्ज की, लेकिन उच्च अधिकारी भी शायद स्कूल में किसी हादसे के घटित होने का इंतजार कर रहे हैं।

नौगांव विकासखंड का थली गांव यों तो खंड विकास कर्यालय से महज 13 किलो मीटर की दूरी पर स्थित  है।लेकिन राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय के हालात देखने पर पता चलता है की यहां दशकों से शिक्षा विभाग का कोई भी अधिकारी निरीक्षण हेतू आया ही नहीं होगा, यदि कोई अधिकारी आया भी होगा तो संभवत उन्होंने यहां के उच्च प्राथमिक विद्यालय भवन के कक्ष–कक्षाओं का निरीक्षण नहीं किया होगा। विद्यालय में कक्ष–कक्षाओं की हालत यह है, कि कभी भी छत (लेंटर) भरभरा कर बच्चों के उपर गिर सकती है। स्कूल भवन के लेंटर और बीम का हाल ये है की, इसमें पड़ी सरिया भी लेंटर छोड़ कर बाहर निकल रखी है।मानों इन सरियों ने भी छात्रों के साथ बैठ कर पठन पाठन की ठान ली हो।

इस स्कूल भवन का निमार्ण वर्ष 2008–09 में किया गया,लेकिन 14 वर्षों के अंतराल में ही यह भवन भ्रष्टाचार का जीता जागता सबूत बन गया है। स्कूल भवन के हालात देखने से लगता है की भवन का वनवास भी अब खत्म हो गया है।और कभी भी यह मिट्टी में मिल कर जमींदोज होने की इंतजारी कर रहा हो। लेकिन विभागीय अधिकारी अभी कुंभकर्ण की निंद्रा में सोया हुआ है। जो अपनी निंद्रा तोड़ने के लिए किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है।

इस संबंध में खंड शिक्षा अधिकारी अजीत भंडारी से जानकारी लेनी चाही तो उनका फोन भी सीता स्वयंवर वाले शिव धनुष की तरह ही भारी हो गया और वह भी अपना फोन कॉल नहीं उठा पाए। वहीं विद्यालय के प्रधानाचार्य दिनेश चमोली ने बताया कि उन्होंने कई बार उच्च अधिकारीयों को इस संबंध में जानकारी दी, लेकिन उनके अधिकारीयों का आलम तो रामायण के रावण जैसा हो गया, कि राम ने सीता को वापस करने हेतू कई अथक प्रयास किए,लेकिन सब विफल हो गए। और अन्ततः रावण ने अपने कुल का सर्वनाश करा कर, खुद मृत्यु शैय्या पर पड़े लक्ष्मण को जीवन जीने के अहम ज्ञान का उपदेश देकर महापंडित का दर्जा हासिल कर लिया हो ।

 

 

 

 

नोट–ख़बर में कुछ अंश बिगड़ती और ढुलमुल प्रशासनिक व्यवस्था पर एक कटाक्ष मात्र है। इसका वास्तविक पात्रों से कोई ताल्लुक नहीं है।

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