आध्यात्म के साथ शांति एवं ज्ञान की भूमि है उत्तराखंड : कोविंद
राष्ट्रपति के दो दिन के उत्तराखंड दौरे का समापन
दौरे के आखरी दिन विभिन्न कार्यक्रमों में हुए शामिल : राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द ने दिव्य प्रेम सेवा मिशन, सेवाकुंज परिसर पहुंचने पर शिव अवतरण, शिव ज्ञान से जीव सेवा यज्ञ, सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंग पूजन, एक वर्षीय अनुष्ठान कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। इसके पश्चात उन्होंने दिव्य प्रेम सेवा मिशन, सेवाकुंज परिसर में बिल्ब के पौधे का रोपण भी किया।
देहरादून। राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने दो दिवसीय उत्तराखंड दौरे के दूसरे दिन हरिद्वार स्थित दिव्य प्रेम सेवा मिशन के रजत जयंती समारोह को सम्बोधित किया। उन्होंने दिव्य प्रेम सेवा मिशन को संकल्प और सेवा की भावना के साथ मानव कल्याण हेतु संवेदनशीलता से कार्य करने वाली संस्था बताते हुए कहा कि आज से 25 वर्ष पूर्व इस संस्था को एक छोटे बीज के रूप में बोने में उनकी भी भूमिका रही है, जो आज बड़ा वृक्ष बन गई है।
राष्ट्रपति ने कहा कि उत्तराखण्ड की पवित्र धरती आध्यात्म् के साथ ही शांति एवं ज्ञान की भूमि रही हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ के साथ हरिद्वार व हर द्वार भगवान विष्णु एवं शिव की प्राप्ति के द्वार हैं। पतित पावनी जीवन दायिनी गंगा भी इसकी साक्षी है। उन्होंने कहा कि जब वे पहली बार राज्य सभा के सांसद बने तब भी तथा राष्ट्रपति बनने के बाद भी उनकी पहली यात्रा उत्तराखण्ड की रही। कहा कि पवित्र गंगा के तट पर स्थापित यह मिशन मानव सेवा के लिए समर्पित हैं। संस्था द्वारा कुष्ठ रोगियों की समर्पित भाव से की जा रही सेवा सराहनीय कहा कि स्वतंत्रता के बाद संविधान द्वारा जाति एवं धर्म पर आधारित अस्पृश्यता का तो अंत कर दिया गया लेकिन अभी भी कुष्ठ के प्रति अस्पृश्यता का भाव समाप्त नहीं हो पाया है। कुष्ठ रोग को कलंक के रूप में देखे जाने की अवेज्ञानिकता के अवशेष आज भी देखे जाते हैं। कुष्ठ रोगियों के प्रति व्याप्त आशंकाओं को दूर करने के प्रयास किये जाने चाहिए। इस अवसर पर देश की प्रथम महिला सविता कोविन्द, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, डॉ धन सिंह रावत, सांसद रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, विधायक आदेश चौहान, प्रदीप बत्रा सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
भारतीय शास्त्रों की देन है, ‘सेवा की साधना’ : राज्यपाल राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि) गुरमीत सिंह ने कहा कि आज का यह कार्यक्रम ‘सेवा की साधना’ को समर्पित है, सेवा की साधना की प्रेरणा हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों की देन है। भारतीय शास्त्रों की देन है, जिनमें परोपकार को सबसे बड़ा पुण्य कहकर महिमामण्डित किया गया है। पवित्र गुरुवाणी और सिक्ख जीवन दर्शन में सेवा और परिश्रम को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। संस्था की इन स्वर्णिम उपलब्धियों’ की पृष्ठभूमि में पिछले पच्चीस वर्षों की तपस्या, सेवा और निष्ठा छिपी हुई है। कहा कि दिव्य प्रेम सेवा मिशन ने, ‘नर सेवा, नारायण सेवा’ के मंत्र को समझा और एक कठिन कार्य को अपने हाथों में लिया है।