उत्तराखंड

संसाधनों के अभाव में यमुनाघाटी के सरकारी अस्पताल बने रेफरल सेंटर

दिक्कत

संसाधनों के न होने से अबतक कई प्रसूता गंवा चुकी है अपनी जान, सुध लेने वाला कोई नहीं

Naugaon। Rohit bijalwan 

यमुनाघाटी के अस्पतालों में डॉक्टर तो हैं, लेकिन संसाधनों के अभाव के चलते रैफरल सेंटर बन चुके हैं। आम लोगों की यही पीड़ा है कि चुनाव तक लोक लुभावन घोषणाओं की झड़ी लगा दी जाती है, लेकिन चुनाव बाद इन पर उतनी तेजी से अमल नहीं होता। इससे आमजन खुद को ठगा महसूस करते हैं। इसी सरकारी सिस्टम के नकारेपन के कारण बीते रोज एक गर्भवती महिला और नवजात को जान से हाथ धोना पड़ गया।

पुरोला अस्पताल में गाइनोलोजिस्ट यानी महिला प्रसूति रोग विशेषज्ञ की तैनाती की गई है। लेकिन, यहां स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। कई बार गंभीर मरीजों को यहां से रेफर किया जा चुका है। आगे भी हालात सुधरेंगे, इसकी उम्मीद फिलहाल कम है। क्या पता दो जिंदगियों की बलि चढ़ने के बाद अब सरकारी सिस्टम जाग जाए।

सोमवार को डीलीवरी के लिए आई सरनोल निवासी ललिता(30) ने सीएचसी नौगांव में दम तोड़ दिया। महिला इनदिनों अपने मायके यानी पुरोला के कंडियाल गांव आई हुई थी। लेकिन, परिवार में खुशियां आने से पहले ही सांसों की डोर टूट गई। महिला को सीएचसी पुरोला के डॉक्टरों ने देहरादून के लिए रैफर किया था। लेकिन नौगांव के आसपास पहुंचते ही दर्द ज्यादा होने पर परिजन ललिता को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नौगांव ले गए। वहां पहुंचने से पहले ही ललिता की प्लस और बीपी चलना बंद हो गया था। जिससे जच्चा और बच्चा दोनों की मौत हो गई।

यमुनाघाटी में मात्र एक गाइनों : घाटी के सीएचसी पुरोला, नौगांव और पीएचसी मोरी और डामटा में मात्र एक महिला प्रसूति रोग विशेषज्ञ है। जो वर्तमान में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पुरोला में तैनात है। लेकिन वहां पर सिजेरियन डीलीवरी कराने को संसाधन उपलब्ध नहीं है। जिसका खामियाजा सरनोल निवासी प्रसव पीड़िता ललिता को उठाना पड़ा। महिला का पहला बच्चा सिजेरियन के जरिए हुआ था। तो दूसरा बच्चा भी सिजेरियन से ही होना था। परिजन अगर समय से पहले ललिता को डिलिवरी कराने देहरादून ले जाते तो क्या पता जच्चा और बच्चा दोनों की जान बचाई जा सकती थी।

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