Mori (उत्तरकाशी)। मोरी विकासखंड के जखोल गांव में इन दिनों सेब के बागों में लंगूरों ने आंतक मचा रखा है। लंगूर अबतक सैकड़ो पेड़ो को नुकसान पहुंचा चुके है वहीं गोविंद वन्य जीव विहार विभाग की नियमावली में क्षतिपूर्ति संबंधी मुआवजे का कोई भी प्राविधान न होने से ग्रामीणों में भारी रोष व्याप्त है।
गोविंद वन्य जीव विहार क्षेत्र जखोल के बोशनी,सरूका , रूंगा एवं पूरमा तोक में ग्रामीणों के करीब सौ से अधिक सेब के बागीचे है। सेब के बागों में कई दिनों से गोविंद पशु विहार के लंगूर आंतक मचा रहे हैं लंगूर सेब के पेड़ों की छाल (bark of tree)। Ko नुकसान पहुंचा रहे हैं जिस से अधिकांश पेड़ सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं साथ ही लंगूर सेब के टहनियों को तोड़कर सेब के पेड़ो को तहस नहस कर रहे है जिससे ग्रामीणों में भारी आक्रोश व्याप्त है। लंगूर अब तक कास्तकार किशन सिंह,, बर सिंह, भगवान सिंह, जोत सिंह, कमल सिंह, लायबर सिंह,राजेन्द्र सिंह, के सेब बागीचों में सैकड़ो पेड़ो को बर्बाद कर चुके है। कास्तकारों की कई वर्षो की कड़ी मेहनत से तैयार किए गए सेब के इन पेड़ो का जंगली जानवरों द्वारा नष्ट करने पर गोविंद वन्य जीव विहार द्वारा मुआवजा का कोई भी प्राविधान न होने से ग्रामीणों में भारी रोष व्याप्त है। कास्तकार किशन सिंह रावत ने बताया कि इस संबंध में कई बार गोविंद वन्य जीव विहार के अधिकारियों से शिकायत करने पर अधिकारी वन कर्मियों द्वारा निरीक्षण करने की बात तो करते हैं लेकिन अधिकारियो द्वारा इसकी कोई भी वैकल्पिक व्यवस्था न करने से कास्तकारों में भारी रोष है। कास्तकारों का कहना है कि इस संबंध में कई बार ग्रामीण वन्य जीव विहार के अधिकारियो से घेरबाड़ कराने एवं इसका मुआवजा देने की मांग भी करते आ रहे है लेकिन अधिकारियो का कहना है कि पेड़ों के नुकसान की भरपाई का कोई भी प्राविधान विभाग में नही है। बागवान किशन सिंह का कहना है कि सरकार जहां प्रदेश में कृषि, बागवानी को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है वहीं कास्तकारों द्वारा गत कई वर्षो से कड़ी मेहनत से तैयार किए गए इन सेब के पेड़ो को जंगली जानवरों से बचाने हेतु कोई भी उपाय नही कर रही है जिससे ग्रामीणों में भारी रोष है।
गोविंद वन्य जीव विहार एवं राष्ट्रीय पार्क के उप निदेशक डीपी बलूनी ने बताया कि वाइल्ड लाइफ सेंचुरी की नियमावली में इसका मुआवजा देने का कोई भी प्राविधान नही है।लंगूरों द्वारा नष्ट किए गए सेब के पेड़ो का प्रपोजल बनाकर उच्च अधिकारियों को भेजा रहा है कि इसके मुआवजे का प्राविधान किया जाए। उन्होने कहा कि घेरबाड़ का प्राविधान तो है लेकिन लंगूर से बचने के लिए घेरबाड़ भी व्यर्थ है।
वहीं ग्रामीणो ने मुख्यमंत्री से इसकी नियमावली में कैबिनेट में संशोधन करने की मांग की है।