उत्तराखंड में धू-धूकर जल रहे जंगल, वन्यजीव भी संकट में
आमतौर पर मार्च के महीने में पहाड़ रहते थे ठंडे
नौगांव। रोहित बिजल्वाण
अभी मार्च का महीना गया भी नहीं, और गर्मी बहुत ज्यादा बढ़ गई है, आमतौर आज तक मार्च के महीने में तो पहाड़ ठंडे रहते ही थे, लेकिन अब स्थिति धीरे-धीरे बदलने लगी है। पहाड़ों में वनाग्नि की समस्या आमतौर पर मई-जून में नजर आती थी, वह अब मार्च में ही दिखने लगी है। वन्यजीव पर भी संकट आ खड़ा हुआ है। वक्त रहते यदि जनमानस सचेत नहीं हुआ तो स्थिति भयावह हो सकती है। इन दिनों राज्य के अधिकांश जिलों के जंगल जल रहे हैं, लेकिन सरकार ठोस कदम नहीं उठा रही है। अब तक लाखों की वन सम्पदा नष्ट हो चुकी है। वन विभाग के बेखबर होने से उसकी कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में आ गयी है। राज्य सरकार ने वन पंचायतें गठित कर रखी है , लेकिन धरातल पर यह भी कहीं नजर नहीं आ रहे। कुछ महीने पूर्व वनों में आगजनी की घटनाओं को कम करने के लिए विभाग ने वन प्रहरियों की नियुक्तियां भी की है, लेकिन स्तिथि जस की तस बनी है।
पहाड़ों में भी चलने लगे एसी-कूलर : ग्लोबल वार्मिंग का असर दुनियाभर में दिखाई दे रहा है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की जब हम बात करते हैं तो कुछ दशकों पहले यहां अच्छी ठंड रहती थी, लेकिन अब स्थिति यह है कि मसूरी, नैनीताल, चमोली, रुद्रप्रयाग जैसे स्थानों में भी लोगों को घरों में कूलर और एसी लगाने लगे हैं।